Prayogshala
दृष्य 1
सेट का वर्णन: एक विध्यालय का आँगन। घंटी बज रही है। घर जाने की खुशी में
प्रांगण में चहल पहल की आवाज़।
सातवीं कक्षा के दो बच्चे, काजल और मोहसिन , घर लौट रहे
हैं। मोहसीन चिंतित दिख रहा है।
काजल: मोही... तू इतना मुर्झाया हुआ
क्यों है?
मोहसिन: काजल, सुना
नहीं? आखरी कक्षा में माट’साब ने क्या
कहा?
काजल: अररे! उन्होनें तो सिर्फ एक प्रयोग करने की बात कही!!
छब्बीस जनवरी में हमारे विध्यालय में प्रतियोगिता जो रखी है!
मोहसिन: हाँ काजल, … पर... घर पर
प्रयोग जो करना है! वो कैसे हो सकता है?
काजल: क्यों? खाला से कह दे … वो जरूर तेरी मदद करेंगी!
मोहसिन: चल चल… अम्मी थोड़ी न पढ़ी लिखी है, जो मेरा मदद करेगी प्रोयोग करने में? बात करती है...!
काजल: मोही! पढ़े लिखे तो मेरे आई पप्पू
भी नहीं हैं! पर उन्हे तो सब कुछ आता है! तेरी अम्मी को भी आता है।
तू बात तो कर!
मोहसिन: (अचंभित!)… क्या बात करती है!?
काजल: देख, आई तो बहुत अच्छी गिनती कर लेती है! शाम को
जब मंडी लगती है, और एक साथ इत्ते सारे लोग खरीदने आते हैं, तब कैसे आई फटाफट एक साथ तीन चार ग्राहकों को संभालती है... सुबजी तोलना, पैक करना, पैसे लेना, छूट्टे
वापिस देना... सब कुछ... वो भी फटा फट! कोई गलती नहीं! बड़े बड़े नोटों की भी गिनतों
फट से करना आता है उन्हें!!
(काजल कुछ सोचती हुयी...)
वैसे मोही... गणित के आंकड़ों
को जोड़ना और घटाना तो मैंने आई से ही सीखा है...वो भी मंडी में! मेरा बचपन तो मंडी
में ही गुज़रा है! आई मुझे चटाई
पर सुला कर सब्जी बेचती थी। जब थोड़ी बड़ी हुई, तब मंडी ही
मेरा खेलने का जगह बन गया! धीरे धीरे सब्ज़ी तोलना, पैसे
गिनना, ... सब सीख गयी… स्कूल जाने लगी, तो मंडी जाना कम होने लगा। पर, याद है...! एक बार
जब आई बीमार हुई, तब पप्पू के कहने पर मैं मंडी में सब्जियाँ
बेचने गयी...! बस... और क्या? गलतियाँ होती गयी ... दाँट
पड़ती गयी और गणित पक्का होता गया!
(दोनों बच्चे खूब खिलखिलकर हँसे!)
मोहसिन: मैंने भी तो तेरा साथ दिया था, मंडी में!
काजल (आखें दिखती हुई): हाँ हाँ …पता है! बेचा कम था ... मटर के दाने चुगे ज़्यादा!
दृष्य 1 समाप्त
दृष्य 2
मोहसिन घर पर बैठा, सोच रहा है! (मन ही
मन में बर्बर्राता हुआ) तभी मैं सोचूँ, उस दिन, काजल ने इत्ते आसानी से दुकानदार की गलती कैसे पकड़ ली और पैसे भी वापिस
मांग ली! मुझे तो पता ही न चला... मेरे पैसे बच गए!
अम्मी: ले बेटा, खा ले! (खाना पड़ोसते हुये)
मोहसिन: अररे
वाह ! बिरियानी! आज खुछ खास है क्या!
अम्मी: नहीं
बेटा! अब्बू के कारखाने के सेठ के घर पर शादी थी ... तो अब्बू
को दावत मिली!
मोहसिन: बिरियानी खाते खाते फिर सोचने लगता है...
अम्मी: (बड़े प्यार से बेटे के सर पर हाथ
फेरते हुये): क्यों बेटा! आज तू इतना खोया खोया सा क्यों है? क्या हुआ? बिरियानी तो तेरी मन पसंद चीज है, न?
मोहसिन: हाँ अम्मी...
यह तो बहुत ही लज़ीज़ है!
अम्मी: तो फिर? मैं देख रही हूँ कि कुछ तो बात
है, जो तुझे अंदर ही अंदर खाये जा रहा है! तेरे इसकूल मैं कुछ हुआ है क्या? कोई तकलीफ है क्या बेटा?!
मोहसिन (गहरी सांस लेते हुये): नहीं अम्मी… तू तो यूं ही परेशान हो जाती है... माट’साब ने एक अजीब गृहकार्य दिया है... उसी उलझन में हूँ...(हँसता है)
अम्मी… (सोचती हुई)…गिरिहा …क्या...क्या?? क्या काम दिया
है तेरे ईस्कूल ने? मेरी जुबान ही फिसल रही है!!
मोहसिन: (ज़ोर से हँसते हुये): अम्मी… गृहकार्य... घर पर करने वाला पढ़ाई का काम...एक
ऐसा प्रयोग करना है, जिसमें घर पर इस्तेमाल होने वाली चीजें
ही प्रयोग में लिया जाये। घर को ही एक प्रयोगशाला बनाना है,
अम्मी! छब्बीस जनवरी को मेरे स्कूल में एक प्रदर्शनी है। अव्वल आने वाले को खुद
कलेक्टर साहिबा सम्मानित करेंगी!
अम्मी: यह तो बड़ी ही अच्छी चीज मालूम होती है बेटा!
पर तू इत्ता परेशान क्यों हो रहा है?
मोहसिन: अम्मी… मेरी प्यारी अम्मी...
हमारे घर में प्रयोगशाला?
कैसे? कहाँ? कित्ते पैसे लगेंगे...
पता है? हमारे स्कूल के प्रयोगशाला देखेगी तो समझ आएगा! हर तरफ काँच की शीशियों
में अलग अलग रंग बिरंगे पदार्थ! कहीं पानी टपक रहा है, तो
कहीं आग पर कुछ उबल रहा है! … पता है... (आवाज़ धीमी करते
हुये) वहाँ तो काँच के बड़े बड़े जार में पुराने जमाने के पशु पक्षी पौधें भी रखें हैं!
यह सब घर पर हो ही नहीं सकता!
अम्मी: (मुसकुराते हुये): तेरे
माट’साब तो बड़े होशियार लग रहें हैं! हमारे घर आए भी नहीं और
पता भी कर लिया कि यहाँ पर पहले से ही एक ‘परर’... जो भी हो... है!
मोहसिन: प्रयोगशाला…???? यहाँ? कहाँ???
अम्मी तू तो सठिया ही गयी!!
अम्मी: बेटा... चल मेरे साथ (बेटे को हाथ पकड़कर घर
के अंदर ले जाती हुई)
मोहसिन: आता हूँ...अम्मी… तुझे
अचानक से क्या हो जाता है ? बिरियानी तो खा लेने दिया होता!
***दृष्य 2 समाप्त ***
दृष्य 3
अम्मी और मोहसिन रसोई घर में
खड़े हैं।
अम्मी: देख बेटा! मेरा ‘पर्रर्रर्रर्र’ … वो जो भी है!
मोहसिन: ज़ोर से हँसते हुये... क्या अम्मी... कुछ भी?
अम्मी: अररे... देख ले... चारों तरफ काँच की
शीशी... उसमें रंग बिरंगे सामान (रसोई में इस्तेमाल होने वाले मसालों ते तरफ इशारा
करती है अम्मी)
एक टपकता हुआ नल ... चूल्हे
की आग... उस पर चाय बन रही है... उबल उबल कर...
मोहसिन: अच्छा...! और शीशियों में पुराने पौधें और
प्राणी?
अम्मी: (आचार की शीशी दिखती हुई)... … एक साल से ऊपर हो गया... देख वो डब्बे... गेहूं भी दो साल के रखे हैं। एक भी कीड़ा नहीं मिलेगा…. मजाल है कि एक भी दाना बिगड़ा हो!
घर के कोने से एक पिंजरा उठा
लायी। उसमें एक चूहा फंसा पड़ा था... कल रात ही पकड़ा गया बिचारा!
मोहसिन (अब आखों में एक चमक जगाते हुये): शुक्रिया अम्मी! मेरा काम हो गया!… (दोनों गले लगते हैं)
अम्मी: हठेला है क्या!. कभी झप्पी तो कभी दाँट! ले... चल
चल... बिरियानी ठंडी पड़ गयी!
मोहसिन: अम्मी. आज शाम की
रसोई में मैं तेरा मदद करूंगा!
अम्मी: लो कर लो बात... अल्लाह तुझे सलामत रहे... मेरी
उम्र तुझे लग जाये... (अम्मी की आखें भर आई)
मोहसिन: हाँ अम्मी. तेरे पास
ही सीखूँगा रसायन विध्या। जैसे काजल मंडी में सीखती है गणित!
अम्मी: तो फिर कारखाने में इतवार को हो आना अब्बू
के साथ... इंजीनीर ही बन जाएगा!
अम्मी और मोहसिन खिलखिलाकर
हँसते हैं.
***दृष्य 3 समाप्त***
दृष्य 4
विध्यालय
में गणतन्त्र दिवस की तैयारी
तिरंगा
आकाश में लहरा रहा है। राष्ट्र गीत की समाप्ती। विध्यालय के प्रधानाचार्य कलेक्टर
साहिबा को विज्ञान प्रदर्शनी के तरफ ले जा रहे हैं।
क्रीड़ांगन
पर सजाई हुई प्रदर्शनी के मेज़। प्रदर्शनी निहारते हुये,
कलेक्टर साहिबा का ध्यान एक प्रदर्शनी ते तरफ खींचता हुआ।
मोहसीन
का प्रदर्शन, सबसे हटकर था। मेज़ पर रसोईघर के भिन्न
भिन्न व्यंजन , मसाले, शीशियाँ॰ कलेक्टर साहिबा : hmmm. Interesting! (मेज़ पर लगी हुई लेबल पढ़ती हुई) रसोईघर: एक महा प्रयोगशाला
मोहसिन: सलाम, मेडम!
कलेक्टर
साहिबा : सलाम, नन्हें वैज्ञानिक! कहो...
क्या दिखाओगे?
मोहसिन: मेरी अम्मीजान के नुसखें!
कलेक्टर
साहिबा : बढ़िया! पेश करो!
मोहसिन: बुखार आए... तो अंग्रेजी गोली लेने डाक्टर के पास नहीं...
अम्मी के रसोईघर में जाओ। काली मिर्च, तुलसी और जीरे का काढ़ा बनाकर
पिलाएंगी ...तो... बुखार छू मंतर हो जाएगा! कोई खर्चा नहीं... कोई गैर असर भी
नही... no side effect, madam!
बदहज़मी
हुई है? पेट ढोलक सा हो गया है?
अजवाइन घिसो हथेली के बीच और रखो जुबान के तले... नाभी पर हींग का लेप लगा लो...
मधु
मख्खी ने डंक मारा? उठाओ खाने का सोडा... घिस डालो जहां डंक
लगा है वहाँ.…Base neutralizes acid,
Madam!
कपड़े
में हल्दी का दाग लग गया? Ariel साबुन खरीदने का पैसा नहीं है?
कपड़े को सादे पानी में डुबाओ, कोई भी साबुन घिसो... पीली
दाग पहले लाल होगी धूप में सूखा दो... और फिर दाग गायब! साबुन
भी तो base ही है न,
madam!
मोहसिन: Madam, बुरा न मानें तो आप पर भी एक प्रयोग कर लूँ ?
कलेक्टर
साहिबा: (खुशी से).... जी हुज़ूर!
मोहसिन: Madam, आपके पर्स का चेन
उधरने वाली है .... ठीक कर दूँ?
कलेक्टर
साहिबा, पर्स की चेन चेक करती हुई... अररे! हाँ...
अटक रहा है॥
मोहसिन: ठीक कर देता हूँ... कहाँ आपको समय मिलेगा? (एक
टुकड़ा मोम लेकर चेन पर घिसने लगा। पास पड़े
pliers से ज़ोर से दबा कर ज़िप कस देता है।)
मोहसिन: मेडेम, एक और नुस्खा दूँ? मेरे अम्मी के प्रयोगशाला से?
कलेक्टर
साहिबा : जी फरमाइए!
मोहसिन: मेडेम, कम्प्युटर पर काम करते करते आपके
दाहिना हथेली के नीचे काला दाग हो गया है... आज, समय निकालकर, नींबू
घिस लीजिएगा। अम्मी कहती
हैं कि नींबू में बहुत शक्ति होती है!
कलेक्टर
साहिबा : ‘Thank you’ बोलती हुई अनन्य प्रदर्शनी के
तरफ बढ़ती हैं.....
***दृष्य 4 समाप्त ***
दृष्य 5
परिणाम का घोषणा सुनने के लिए
क्रीड़ांगन में विध्यालय के बच्चे बड़े ही उत्सुकता के साथ बैठे हैं, इंतज़ार
में... ।
प्रधानाचार्य: आज का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का विजेता: रसायानिक क्षेत्र में, मोहसिन का महाप्रयोगशाला।
(मोहसिन और अनन्य
विजेताओं को मेडल पहनाया गया)
प्रधानाचार्य: मैं
कलेक्टर साहिबा से निवेदन करूंगा कि आज के इस अवसर पर बच्चों से अपनी मन की बात कहें!
कलेक्टर
साहिबा : आज इस पाठशाला ने मुझे मेरे बचपन की याद दिला
दी। मैं भी मेरे गाँव के पाठशाला में आठवीं कक्षा तक पढ़ी। मेरे गाँव में आठवीं के बाद
लड़कियां स्कूल जाना छोड़ देती थी क्योंकि आगे पढ़ने के लिए दूर के गाँव जाना पड़ता था। गाँव के स्कूल में आठवीं तक ही कक्षा थी! मेरे पिताजी
को बहुत इच्छा थी कि मैं खूब आगे तक पढ़ू। इसलिए आठवीं के बाद हम शहर रहने चले गए। आज
अरसों बाद, मोहसीन के महा प्रयोगशाला ने मुझे भावुक कर
दिया। मुझे वो सब कुछ याद दिला दिया जो मैं मेरे सहेलियों के साथ बचपन में किया करती
थी।
शायद, आज, मेरे
दफ्तर पर आए हर व्यक्ति, उनकी समस्यायेँ, उन समस्याओं
का मूल कारण ढूंढकर उनका समाधान ढूँढना... मुझे इसलिए अच्छा लगता है... और मैं सक्षम
महसूस करती हूँ क्योंकि मेरा बचपन माटी से जुड़ा हुआ है!
बच्चों, आपके
शिक्षकों द्वारा बांटा हुआ ज्ञान का आप तभी भरपूर लाभ उठा पाओगे जब आप इस ज्ञान का
इस्तेमाल अपने दैनंदिन जीवन में, घर में, गाँव
के चौपाल में, गलियों में, खेतों
में, आपसी बात चीत में... समस्याओं के हल करने में, अभ्यास
करोगे। अपने आस पास होती हुई छोटी से छोटी घटनाओं का निरीक्षण करें, घर पर
माता-पिता-दादा-दादी के साथ समय बिताएँ, काम में हाथ बटायेँ, उनसे सीखें .... तभी ज्ञान का
महत्व का आभास होगा।
आज आपके
सहपाठी मोहसिन ने उसी साधारण ज्ञान का असाधारण प्रदर्शनी
कर, मेरे दिल को छू लिया है! शिक्षा वो नहीं जो हमें घमंडी बना
दें, बल्कि वो है जो हमें जागृत करें। मैं इस विध्यालय के शिक्षकों को
भी अभिनंदन भेटती हूँ, जिन्होनें विध्यार्थियों के लिए ऐसा अनोखा
प्रतियोगिता की बात सोची और उन्हें प्रदर्शनी के लिए प्रेरित की। यह अलग सोछ ही एस
विध्यालय और छात्रों की खास पहचान बनेगी! आज हमारे देश को ऐसे ही सोच की ज़रूरत है जो
अपने आपसी भेदभाव, अहंकार और रंजिश का दमन कर, हर एक
दिन का नया सूरज उगाने की क्षमता रखें। अपने माता पिता और गुरुजनों का सम्मान करें
और उनके जीवन से सीखें।
जय हिन्द
!! (तालियों कि गरगराहट...)
काजल मोहसिन को भीड़
में ढूंढती है! … उसे बधाई देना चाहती है ...
मोहसिन हाथ में
मेडल और आखों में चमक लिए दौड़ रहा है... घर की ओर!
***समाप्त***
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